ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा जीव है। जिसे अच्दे बुरे की समझ है।
स्वामी जो अपने आश्रम में रहते थे। उनका नाम सत्यानंद है। वह आश्रम में सुखपूर्वक अकेले रहते थे। दूर-दूर तक स्वामी जी की प्रसिद्धि फैलरी हुई थी। लोग स्वामी जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे। पास ही में रामपुर एक गांव था। वहॉ दो मित्र रहते थे। एक का नाम मुकुट और दूसरे का शंकर था। एक दिन दोनों मित्र स्वामी जी के आश्रम में आए। वहॉ उनी आँखे आश्चर्य से खुली की खुली रह गई। उन्होने देखा कि स्वामी जी के आश्रम में तरह तरह के फल और खाने की अच्छी-अच्छी ची़जो के ढेर लगे थे। दोनों ने सोचा कि यदि हम स्वामी जी के शिष्य बन जाएं तो बड़े मजें रहेगे। इस प्रकार लालच में आकर वे दोनेां स्वामी जी की सेवा करने लगे। उनके दिन चैर से गुजर रहे थे। सुबह-सुबह उठने तथा स्थान आदि करने की ही परेशानी थी। फिर तो सारा दिन आराम से गुजरता था। स्वामी जी तेा पूजा पाठ में लगे रहते या आने जाने वाले भक्तों से घिरें रहते। संध्या के समय स्वामी जी थोड़ा-सा भोजन करने और फिर धान में बैठ जाते। मौज तो दोनो चेलो की थी। कुछ ही दिनो में दोनो खा-खाकर मोटे हो गये। स्वामी जी जब उन्हे देखेते तो मन ही मन हँसा करते। वे उन दोने को प्यारे करते थे। चेले भी उनकी सेवा करने में पीछे नही थे।
एक दिन स्वामी जी पूजा के बाद उदास हो गए और आराम करने लगे। मुकुट ने कहा ’गुरुजी आज क्या बात है ? आप उदास क्यों है? सत्यानंद जी ने बड़े साधारण ढंग से कहा, आज मुझे ज्वर हो गया है’ शंकर दौड़कर पास आया, ’गुरुदेव कहिए मैं आपके लिए क्या करुँ। मुस्करा दिए और कहा, नही, मुझे आराम करने से ही लाभ होगा। मुकुट को शंकर की बातें सुनकर बेचैनी हो गई कि कही गुरुजी शंकर से मुझसे ज्यादा ने चाहने लगे। बस, वह गुरुजी के पैर दबाने लगा। गुरुजी बेचारे आराम करना चाहते थे। पर शिष्यों ने तो उन्हे और परेशानी में डाल दिया।
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